फिल्म सेंसरशिप भारत | Film Censorship India
भारत में ‘संतोष’ फिल्म पर प्रतिबंध: सेंसरशिप और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस
हाल ही में भारत में फिल्म ‘संतोष’ पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। यह फिल्म ब्रिटिश-भारतीय फिल्म निर्माता संध्या सूरी द्वारा निर्देशित है और इसे कान्स फिल्म फेस्टिवल में प्रशंसा मिली थी। फिल्म को भारत में केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) द्वारा रोक दिया गया, जिससे फिल्म सेंसरशिप और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर बहस छिड़ गई है।
‘संतोष’ फिल्म की कहानी
फिल्म ‘संतोष’ की कहानी एक युवा विधवा, संतोष नामक महिला पुलिस अधिकारी के इर्द-गिर्द घूमती है। अपने पति की मृत्यु के बाद, वह भारतीय पुलिस बल में शामिल होती है, जहाँ उसे एक दलित लड़की की हत्या की जांच का जिम्मा सौंपा जाता है।
जैसे-जैसे वह गहराई से जांच करती है, उसे समाज की जटिलताओं और पुलिस विभाग के अंदर फैली असमानताओं का सामना करना पड़ता है। वह देखती है कि किस तरह जातिगत भेदभाव, महिलाओं के प्रति दमनकारी रवैया और सत्ता का दुरुपयोग न्याय की राह में बाधा डालते हैं। संतोष का संघर्ष न केवल इस हत्या के दोषियों को पकड़ने का होता है, बल्कि यह भी होता है कि वह खुद को एक महिला पुलिस अधिकारी के रूप में स्थापित कर सके।
फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक महिला अधिकारी को पुरुष-प्रधान व्यवस्था में संघर्ष करना पड़ता है और सामाजिक अन्याय के विरुद्ध खड़े होने के लिए उसे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
‘संतोष’ फिल्म का विषय और विवाद
यह फिल्म पुलिस बर्बरता, जातिगत भेदभाव, महिला उत्पीड़न और इस्लामोफोबिया जैसे संवेदनशील मुद्दों को उजागर करती है। इन विषयों के कारण फिल्म को CBFC द्वारा भारत में रिलीज़ की अनुमति नहीं दी गई। सेंसर बोर्ड का मानना है कि यह फिल्म सरकारी संस्थानों और सामाजिक ढांचे को नकारात्मक रूप से पेश करती है, जिससे समाज में असंतोष फैल सकता है।
सेंसरशिप का कारण
CBFC के अनुसार, फिल्म की कहानी भारत की सामाजिक संरचना और सरकारी संस्थानों की छवि को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है। हालांकि, फिल्म के निर्माता और कई आलोचकों का मानना है कि यह सेंसरशिप एक महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दे पर पर्दा डालने का प्रयास है।
अंतर्राष्ट्रीय पहचान और भारत में सेंसरशिप
फिल्म ‘संतोष’ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी सराहा गया, इसे BAFTA नामांकन भी मिला। लेकिन भारत में सेंसरशिप का सामना करने वाली यह पहली फिल्म नहीं है। इससे पहले भी ‘उड़ता पंजाब’, ‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’ और ‘पद्मावत’ जैसी फिल्मों को भी विवादों का सामना करना पड़ा था।
सेंसरशिप के प्रभाव
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर असर – फिल्मों पर प्रतिबंध रचनात्मक स्वतंत्रता को प्रभावित करता है।
- विचारों पर अंकुश – सामाजिक मुद्दों पर खुलकर बात करने वाले विषयों को अक्सर सेंसर किया जाता है।
- विवादों से प्रचार – प्रतिबंध से फिल्म को अधिक लोकप्रियता मिल सकती है, क्योंकि दर्शकों में उत्सुकता बढ़ जाती है।
फिल्म निर्माताओं की प्रतिक्रिया
निर्देशक संध्या सूरी ने कहा कि यह फिल्म समाज के वास्तविक मुद्दों को दिखाने के लिए बनाई गई थी। उन्होंने CBFC के इस निर्णय को निराशाजनक बताया और कहा कि भारत में फिल्मों की स्वतंत्रता पर सवाल उठना चिंता का विषय है।
निष्कर्ष
फिल्म ‘संतोष’ पर प्रतिबंध भारत में सेंसरशिप और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि समाज की वास्तविकताओं को दर्शाने वाला एक महत्वपूर्ण प्रयास है। क्या कला को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए या फिर सरकार को यह तय करने का अधिकार होना चाहिए कि जनता क्या देखे? यह बहस लगातार जारी रहेगी।